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Amrit Vaani

 1 - दयया सर्वभूतेषु संतुष्टया येन केन वा । सर्वेन्दृयोपशान्त्या च तुष्यत्याशु जनार्दनः ।।       ( श्रीमद्भागवत ) जीव मात्र के प्रति दया, जो कुछ भी मिले उससे सन्तुष्टि, सभी इन्द्रियों का संयम इन तीन उपायों से परमात्मा शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं ।इन बातों को कार्यान्वित करने वाले पर भगवान कृपा करते हैं । संयम के बिना जीवन सरल नहीं हो सकता ।बिष को खाने से ही मनुष्य मर सकता है उसके चिन्तन से नहीं । किन्तु उपभोग न करते हुए भी बिषयो के चिन्तन मात्र से भी मनुष्य मरता है । अर्थात बिषय बिष से भी बुरे हैं । उनका बिषवत त्याग करना चाहिए । 2 - एक बार एक बेहद खूबसूरत महिला समुद्र के किनारे रेत पर टहल रही थी। समुद्र की लहरों के साथ कोई एक बहुत चमकदार पत्थर छोर पर आ गया महिला ने वह नायाब-सा दिखने वाला पत्थर उठा लिया। वह हीरा था। महिला ने चुपचाप उसे अपने पर्स में रख लिया। लेकिन उसके हाव-भाव पर बहुत फर्क नहीं पड़ा। पास में खड़ा एक बूढ़ा व्यक्ति बडे़ ही कौतूहल से यह सब देख रहा था। अचानक वह अपनी जगह से उठा और उस महिला की ओर बढ़ने लगा। महिला के पास जाकर उस बूढ़े व्यक्ति ने उसके सामने हाथ...
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Wonderful Definitions

 School  A place where Parents pay and children play  Life Insurance  A contract that keeps you poor all your life, so that you can die Rich.  Nurse:  A person who wakes u up to give you sleeping pills.  Marriage  It's an agreement in which a man loses his bachelor degree and a woman gains her masters..  Tears  The hydraulic force by which masculine willpower is defeated by feminine waterpower.  Lecture  An art of transferring information from the notes of the Lecturer to the notes of the students without passing through "the minds of either"  Conference  The confusion of one man multiplied by the number present.  Conference Room  A place where everybody talks, nobody listens and everybody disagrees later on  Father  A banker provided by nature  Criminal  A person no different from the rest  ....except that he/she got caught  Boss  Someone who is early when you are late and...

Best Hindi Quotes

 1 - “जीवन में खुशी का अर्थ लड़ाइयाँ लड़ना नहीं, बल्कि उन से बचना है ।         कुशलतापूर्वक पीछे हटना भी अपने आप में एक जीत है ।”       🌹 क्योकि 🌹        "अभिमान" की ताकत फ़रिश्तो को भी "शैतान" बना देती है, और         "नम्रता" साधारण व्यक्ति को भी  "फ़रिश्ता" बना देती है । 2 - "कदर" और "वक्त" भी कमाल के होते हैं ..! जिसकी "कदर" करो वो "वक्त" नहीं देता..!!         और जिसको "वक्त" दो वो "कदर" नहीं करता 3 - 

राजा के दरबार मे एक आदमी नौकरी मांगने के लिए आया

 राजा के दरबार मे एक आदमी नौकरी मांगने के लिए आया,,,,,उससे उसकी क़ाबलियत पूछी गई तो वो बोला, "मैं आदमी हो चाहे जानवर, शक्ल देख कर उसके बारे में बता सकता हूँ,,,,,,,, राजा ने उसे अपने खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना दिया,,,,,कुछ ही दिन बाद राजा ने उससे अपने सब से महंगे और मनपसन्द घोड़े के बारे में पूछा तो उसने कहा नस्ली नही है,,,,,,, राजा को हैरानी हुई, उसने जंगल से घोड़े वाले को बुला कर पूछा,,,,,उसने बताया घोड़ा नस्ली तो हैं पर इसके पैदा होते ही इसकी मां मर गई थी इसलिए ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला बढ़ा है,,,,,राजा ने अपने नौकर को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं?? "उसने कहा "जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता है,,,,,,,, राजा उसकी काबलियत से बहुत खुश हुआ, उसने नौकर के घर अनाज ,घी, मुर्गे, और ढेर सारी बकरियां बतौर इनाम भिजवा दिए,,,,,,,,,,और अब उसे रानी के महल में तैनात कर दिया,,,कुछ दिनो बाद राजा ने उससे रानी के बारे में राय मांगी, उसने कहा,  "तौर तरीके तो रानी जैसे हैं ...

कर्मो की दौलत

एक राजा था जिसने अपने राज्य में क्रूरता से बहुत सी दौलत इकट्ठा करके(एकतरह शाही खजाना)आबादी से बाहर जंगल में एक सुनसान स्थान पर बनाए तहखाने मे सारे खजाने को खुफिया तौर पर छुपा दिया था। खजाने की सिर्फ दो चाबियां थीं। एक चाबी राजा के पास और एक उसके एक खास मंत्री के पास थी। इन दोनों के अलावा किसी को भी उस खुफिया खजाने का राज मालूम ना था। एक रोज़ किसी को बताए बगैर राजा अकेले अपने खजाने को देखने निकला। तहखाने का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हो गया और अपने खजाने को देख-देख कर खुश हो रहा था  और खजाने की चमक से सुकून पा रहा था। उसी वक्त मंत्री भी उस इलाके से निकला और उसने देखा कि खजाने का दरवाजा खुला है वो हैरान हो गया और ख्याल किया कि कहीं कल रात जब मैं खजाना देखने आया तब शायद खजाने का दरवाजा खुला रह गया होगा। उसने जल्दी-जल्दी खजाने का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और वहां से चला गया। उधर खजाने को निहारने के बाद राजा जब संतुष्ट हुआ और दरवाजे के पास आया तो ये क्या! दरवाजा तो बाहर से बंद हो गया था।  उसने जोर-जोर से दरवाजा पीटना शुरू किया पर वहां उनकी आवाज सुनने वाला उस जंगल में कोई ना था। राजा ...

अपने फेसबुक अकाउंट, ग्रुप या पेज को कैसे डिलीट करें?

Facebook खाते को हटाने के बारे में बहुत सारे कारण हो सकते हैं - शायद आपको लगता है कि आप इस पर बहुत अधिक समय बिताते हैं और सोशल मीडिया को साफ़ करना चाहते हैं, या हो सकता है कि आपने और आपके दोस्तों ने इसका उपयोग करना बंद कर दिया हो, इसलिए इसे आसपास रखने का कोई कारण नहीं। अपने फेसबुक खाते को हटाने के बारे में समझना महत्वपूर्ण है, आपके खाते को निष्क्रिय करने से अलग है - एक बार हटाए जाने के बाद, इसे कभी भी पुनर्प्राप्त नहीं किया जा सकता है। जिसका अर्थ है, यदि आप अस्थाई डिटॉक्स प्रयोजनों के लिए अपने खाते से छुटकारा पाने का इरादा रखते हैं, तो आप कुछ भी हटाए बिना सोशल मीडिया से डिटॉक्स करने के वैकल्पिक तरीकों पर विचार कर सकते हैं। लेकिन अगर आपको यकीन है कि आप दुनिया के सबसे लोकप्रिय सोशल मीडिया नेटवर्क को छोड़ने के लिए तैयार हैं, तो यह एक सरल प्रक्रिया है। ध्यान रखें, यदि आप अपने फेसबुक को हटाते हैं, तो आपकी तस्वीरें और आपकी सभी फेसबुक जानकारी हमेशा के लिए खो जाएगी। यदि आप उस जानकारी को सहेजना चाहते हैं, तो मैं इसकी एक प्रति डाउनलोड करने का सुझाव देता हूं। अपने सभी फेसबुक सूचनाओं की एक प्रति ...

परमात्मा का आभार करो |

एक पुरानी सी इमारत में था वैद्यजी का मकान था। पिछले हिस्से में रहते थे और अगले हिस्से में दवाख़ाना खोल रखा था। उनकी पत्नी की आदत थी कि दवाख़ाना खोलने से पहले उस दिन के लिए आवश्यक सामान एक चिठ्ठी में लिख कर दे देती थी। वैद्यजी गद्दी पर बैठकर पहले भगवान का नाम लेते फिर वह चिठ्ठी खोलते। पत्नी ने जो बातें लिखी होतीं, उनके भाव देखते , फिर उनका हिसाब करते। फिर परमात्मा से प्रार्थना करते कि हे भगवान ! मैं केवल तेरे ही आदेश के अनुसार तेरी भक्ति छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ। वैद्यजी कभी अपने मुँह से किसी रोगी से फ़ीस नहीं माँगते थे। कोई देता था, कोई नहीं देता था किन्तु एक बात निश्चित थी कि ज्यों ही उस दिन के आवश्यक सामान ख़रीदने योग्य पैसे पूरे हो जाते थे, उसके बाद वह किसी से भी दवा के पैसे नहीं लेते थे चाहे रोगी कितना ही धनवान क्यों न हो। एक दिन वैद्यजी ने दवाख़ाना खोला। गद्दी पर बैठकर परमात्मा का स्मरण करके पैसे का हिसाब लगाने के लिए आवश्यक सामान वाली चिट्ठी खोली तो वह चिठ्ठी को एकटक देखते ही रह गए। एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आँखों के सामने तारे चमकते हुए नज़र आए ...